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वो सतरंगी पल - कहानी

By StoryMirror Competition


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163

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eBook

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StoryMirror

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About the book:

संपादकीय---

  नागपुर शहर की अग्रणी व प्रतिष्ठित साहित्यिक, सामाजिक संस्था"हिंदी-महिला-समिति व स्टोरी मिरर हिंदी के संयुक्त रुप से आयोजित कहानियों/ कविताओं लेखन की एक प्रतियोगिता रखी गई जिसपर एक ई-बुक संग्रह "वो सतरंगी पल" रखा गया है,इस सफल प्रतियोगिता में 500 से भी अधिक रचनाकारों ने प्रवेश लिया सभी ने बड़ी खूबसूरती से अपने हृदय के उद्वेलित भावों को -- कलमबद्ध कर प्रस्तुत किए हैं जो तारीफे के काबिल हैं। लिखित कहानी/कविताएं जब आप से मिलेगी तो वे सभी आपसे घुल-मिल ही जावेगी,और फिर हिंदी भाषा का तो लुत्फ व अंदाज ही निराला होता है जब वे मिलकर पाठकों को छेड़ती है और गुदगुदाती हैं पढ़ने वाला अपने को ही पात्र समझ बैठता है और खो जाता है उन सतरंगी पलों में जब प्राण किसी की यादों में अकुलाते लगते। हैं,उन सुखद स्मृतियां में मदहोश कर देते हैं जहां हमें सिर्फ वही महसूस होता है जो हमारा है जब होश आया है तो सामने पुस्तक पाता है क्योंकि कविताएं/कहानियां कभी बेवफा नहीं होती और पाठक भी लेखक की सूरत से नहीं सीरत से मित्रता कर बैठता है।और यह सब तभी होता है जब साहित्य/काव्य अपनी छाप छोड़ देता है पाठक के दिलों पर,आज अच्छा साहित्य पैदा होता है पर एक नवजात शिशु की तरह मर जाता है ,जिसकी मां को वह पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता और उसकी कमी उसे ऐसे मुकाम पर लाकर खड़ी कर देती है कि उस समय यह बात विचारणीय हो जाती है कि मां को बचाए या शिशु को ? क्योंकी आज अच्छा साहित्य पैदा होते ही मर‌ जाता है ।क्या वाकई आज अच्छा साहित्य हमें मिल रहा है?उसको समाज द्वारा वो पौष्टिक आहार लेखन का का मिल रहा है ?क्या हम इस साहित्य के जरिए हमारी संस्कृति बचा रहे हैं ? ऐसे अनेकानेक ज्वलंत प्रश्न है जो साहित्यकार समाज से कर रहा‌ है ?

  अच्छा साहित्य ,काव्य तो इंकलाब की तरह होता है जो तहलका मचा देता है।मैं यही चाहती हुं कि कहानियां/कविताएं भी। ऐसी ही हो जो कुछ हमें कहे केवल मनोरंजन नहीं ,,,,इस ई-बुक संग्रह में भी नवोदित कवियों व

कहानीकारों ने प्रयास किया है कहीं आक्रोश है, कहीं रूदन,कहीं, त्याग, कहीं घुटन, कहीं प्रेम, कहीं चुभन,हास्य,संदेश तड़प,शिक्षा,कहीं वो पछतावा आप महसूस करेंगे इस ई-बुक संग्रह में "काश मैं कह पाती " मैं एक ऐसा पछतावा जो काश पर आ रूक गया वो जीवन के अंतिम समय तक भी इस इस "काश" से मुक्त नहीं हो पावेगी,एक पिता का दर्द, फिर मिलेंगे,अढ़ाई कोस, फिर मिलेंगे, कहानियां वो कविताएं-रेप,वो आखरी पल,सत्ता की बिमारी ,मेरा तुम्हारा पहले से नाता, अहसास मेरे मन के ,आदि की ऐसी रचनाएं हैं जो दिल छू गई हैं।

    सभी रचनाकारों का प्रयास हमें कुछ कहता है ,आज साहित्य ,काव्य की भीड़ में हमारा यह प्रयास कहां तक सफल हुआ इसका निर्णय तो पाठक ही करेंगे,मेरा तो यह कहना है कि कवियों,कहानीकारों, साहित्यकारों को भीड़ का हिस्सा बन नहीं रहना चाहिए आज इस साहित्य बाढ़ में वे डूबे नहीं अपितु निखर कर ऊपर आवे,वे

लोगों में एक आग को सुलगाने में सफल हो,एक एक शब्द शोलों का काम करें ऐसा काव्य साहित्य रचे जो दर्द, उत्साह,उमंग ,हर व्यक्ति में आत्मविश्वास,साहस, को जगा दे ,और अब इस ई- बुक पर हस्ताक्षर आप करेगें कि हमारे सब रचनाकार कहां तक सफल हुए हैं कारण साहित्य तो वो' हवनकुंड" है जिसमें जब आहुतियों

के समान जितना अपने को तपावेगे उतनी ही अपनी सुगंधी सब दिशाओं में फैलाते जावेगे ,,,,,,,,

       रति चौबे

 अध्यक्षा-हिंदी महिला समिति"नागपुर महाराष्ट्र

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