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व्यथित मन : शोर खामोशियों का (Vyathit Man : Shor Khamoshiyon Ka)

★★★★★
Author | उर्मिला वर्मा (Urmila Verma) Publisher | StoryMirror Infotech Pvt. Ltd. ISBN | 9789392661297 Pages | 110 Genre | Poetry
PAPERBACK
₹200
E-BOOK
₹99







About the Book:


इस पुस्तक में, भावपूर्ण शायरी, कविताएं, आधार गीत, विरह, वेदना, वचन, स्वप्न, नींद, पूजा, अर्चना, तरुणाई, बचपन से पचपन तक के सभी रिश्तों की अनुभूतियों, को जीवंत कियागया है। शब्दों में रचकर कैसे जीवन को अर्थ दिया है, कैसे अधूरे सपनों को हर पल साथ रहकर जिया है, दर्द से कराह कर हर ज़ख़्म आंसुओं से धोया, खोला, फिर सिया, बस इसी तरह से जिया है। आप पढ़िये इस पुस्तक को और अवश्य बताइए कि मेरे जीने का तरीका आपको कैसा लगा।


About the Author:


मैं उर्मिला वर्मा, मुझे बचपन से ही कुछ लिखने का, पढ़़ कर उसे जीवन में उतारने की रुचि थी। कविताएं, दोहे, चौपाई, सवैया, गीतों को जब सुनती, उन्हें लिख लेती, चलते-चलते यूं ही काफिया बोल देती। वो दौर, उमंगो, तरंगो, से भरा हुआ करता था। संवेदनशीलता तो थी, पर वेदना ना थी, ग़मों से पहचान न थी। एकाएक तूफ़ान आया और एक ही झोंके में सब कुछ उजाड़ कर सदा के लिए पतझड़ दे गया। मेरे पति, प्रेमी, सखा, स्वामी, जो मेरे सब कुछ थे, उन्हें अपने साथ ले गया। मैं खामोशी से, अंधेरे एक कोने में शून्य को निहारती उन्हें ढूंढती रहती।


बरसों बाद खामोशी को तोड़ बोलने लगी, कुछ लिखकर पढ़ने लगी, जो उन्हें पंसद था वो करने लगी, और इसी तरह से "व्यथित मन" के एक पन्ने पे वो और दूसरे पे मैं साथ रहने लगी। मैं भीड़ से अंजान, बचकर निकलने लगी, शंतरज की चालों से, खुद के पांव के छालों से अंजान, तन्हा सफर करने लगी। अत: यह किताब मैं अपने स्वर्गीय पति को अर्पित करती हूं।


जाते जाते वो मुझपे करम कर गया

हर एहसास ज़िन्दा, सजन कर गया

मेरी ठिठुरी उंगलियां जो थीं आज तक

उनके नाम वो काग़ज़ कलम कर गया।।


















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