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कस्तूरी (Kasturi) | Free Preview

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Author | कविता पनोत (Kavita Panot) Publisher | StoryMirror Infotech Pvt. Ltd. ISBN | ebook Pages | 20 Genre | Poetry
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About the Book:


यह मेरे लिए महज एक किताब नहीं हैं, मैंने अपनी ज़िन्दगी की श्वासों के कीमती पलों को इसके पृष्ठों पर कैद किया है। वैसे तो सीधी सरल भाषा में कहा जाए तो ज़िन्दगी के सभी अनुभवों की छाप को कलम से तराशकर पन्नों पर बिखेरना एक कविता है।


मैंने भी अपनी समझ और विचार शक्ति से इस कार्य को करने की कोशिश की है। हर इंसान के सोचने-समझने का अंदाज अलग होता है।


मेरी ज़िन्दगी के हर लम्हे को मैंने कागजों पर सजाकर, हर एक पल, चाहे वह खुशी हो या विषमता में उपजा दर्द, ज़िन्दगी के हर एक अनुभव को लफ़्ज़ों के माध्यम से आपके दिलों तक पहुँचा सकूँ, ऐसी एक छोटी सी कोशिश की है।


लेखन को आप सभी के समक्ष पहुँचाने का यह मेरा पहला पड़ाव है, या कहूँ तो मेरे स्वप्न को जमीं से उठाकर आसमाँ का सफर करवाने का यह पहला पड़ाव है। रात के सन्नाटे में जब सब गहरी नींद सो रहे थे, मैं और मेरे ख्वाब अपनी कल्पनाओं की दुनियाँ में, ज़िन्दगी के रंगों को पृष्ठों पर संजो रहे थे।

इस सम्पूर्ण किताब में ग्यारह खंड है।


हर एक खंड में समाहित कविता उसके नाम के अर्थ पर आधारित है।अपनी ज़िन्दगी के एहसासों एवं तजुर्बों को दिल की गहराइयों तक महसूस करके, अल्फाज़ों में पिरोया है, जिसका सीधा भाव कविताओं में झलकता है। बिल्कुल ही सीधी, सरल भाषा का प्रयोग होने से हर एक व्यक्ति इसे आसानी से समझ सकता है।

हर एक कलमकार के लिए उसका लेखन ही उसकी सच्ची धरोहर होती है।वहीं उसका सच्चा साथी होता है।

सोचती हूँ, हृदय की गहराइयों से, क्या होता जो खुदा ने, कागज-कलम न बनाये होते, तब शायद हम खुद से भी पराये होते।


यह किताब कब लिखी जाये कैसे लिखी जाये ऐसी कोई रूपरेखा तय नहीं थी।वैसे तो ज़िन्दगी स्वयं एक किताब है और हर एक इंसान की किताब के पन्नों के गीत और कहानी को रचने वाला रचियता एक ही है जिसे हम सम्पूर्ण जगत का रचियता कहते हैं।सच तो यह है कि हर एक दिन, घटना, अनुभव उस सृजनहार के द्वारा लिखा एक लेख है और हम उसे जी रहे हैं।


वैसे तो बचपन से ही भावों को कलम और कागज में उतारती आई हूँ। लेकिन कभी इसे एक किताब का अंजाम दे पाऊँगी ऐसा कुछ सोचा नहीं था। 10 साल लेखन से दूर रही, अपने निजी जीवन में व्यस्त रही, लेकिन अचानक कोरोना वायरस का आना हुआ और सारी दुनियाँ में तूफान सा फैल गया।

हर एक व्यक्ति घर में बंद हो गया, ज़िन्दगी बदल गई। कितने ही अपनों को अकस्मात खोया हमने। जीवन की क्षण भंगुरता का आभास हुआ और बस तभी से लिखने का ये सफर जारी है।


अपने ससुर, जो सदैव मेरे लेखन को पढ़कर समझते और सराहते, अकस्मात उनका भी यूँ चले जाना हम सभी के लिये एक आघात था। बस, उन्हीं की स्मृति में अपने लेखन को एक किताब में समेटकर उन्हें समर्पित करने का निर्णय लिया।


कस्तूरी एक सुगंधित पदार्थ है जो हिरण की नाभी में पाया जाता है, लेकिन हिरण कस्तूरी की तलाश में वन-वन भटकता रहता है ठीक उसी तरह, जैसे इंसान सुख, शान्ति व खुशी की तलाश बाहरी दुनियाँ में करता रहता है।

मैंने भी अपने जीवन के इस कानन में उपजे काव्य रूपी कुसुमों को कस्तूरी की उपमा दी है क्योंकि यह आंतरिक भावों की सुगंध है। जो शब्दों के माध्यम से दिलों को छू लेने का सफर तय करती है। मेरे अनुसार हम भी उस कस्तूरी मृग की तरह है जो आंतरिक शांति की तलाश बाहरी दुनियाँ में करते रहते हैं और इस तलाश की राह में उपजे अनुभवों को मैंने कविताओं का रूप दिया है। कस्तूरी से अच्छा कोई नाम और भाव मेरी किताब के लिए मेरी समझ से बाहर था।



About the Author:


यहाँ मैं किसी खूबसूरत लफ़्ज़ों से भरी कविता की नहीं पर, जीती जागती कविता की बात कर रहा हूँ जो एक बेहद उम्दा कवयित्री है जिसने बचपन से ही कविताओं को अपना साथी बना लिया, मन में होने वाली हर एक कश्मकश को लफ़्ज़ों में पिरो दिया और देखते ही देखते कागज़ और क़लम मानो उसके हमसफ़र बन गए। पिता श्रीपाल मौर्य और माता विमल मौर्य की लाड़ली वक़्त रहते एक सुंदर कवयित्री बन गई।


आज से क़रीब २ साल पहले मैंने कविता की कविता को सुना था और यह सुनने-पढ़ने का सफर अब भी जारी है। यकीन मानिये, मैंने कविता की कविताओं को निखरते देखा है और कविता को बतौर कवयित्री उभरते देखा है।


कविता को राइटर ग्लोबल मूवमेंट ऑफ इंडिया के मंच पर वर्ष 2020-21 में हिन्दी राइटर ऑफ द ईयर के सम्मान से सम्मानित किया गया ।


ज़िन्दगी का हर एक पहलू और आस-पास होने वाली चीज़ों को देखना-समझना और उसे लफ़्ज़ों में सजाने का हुनर कविता ने बख़ूबी अपनाया है। कभी संजीदा, कभी संवेदनशील, कभी गुदगुदाती है तो कभी ये आँखों में पानी ले आती हैं क्योंकि लफ़्ज़ों की बारिश जो कविता की क़लम से बरसती है। हर एक कविता ज़िन्दगी का एक नया चेहरा सामने रखती है और मैं सोचता हूँ कितने पहलू ऐसे हैं जो सामने आने बाक़ी हैं। 


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