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(हिसाब बराबर) Hisaab Barabar

By डॉ. रमाकांत शर्मा (Dr. Ramakant Sharma)


GENRE

Drama

PAGES

160

ISBN

978-93-91116-49-1

PUBLISHER

StoryMirror

HARDCOVER ₹250
Rs. 250
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About Book:

व्यंग्य का जन्म अपने समय की विद्रूपताओं के भीतर से उपजे असंतोष से होता है। भीतर का यह असंतोष संवेदनशील और पैनी दृष्टि रखने वाले लेखक की लेखनी के जरिये कागज पर उतरता है और समाज में व्याप्त विसंगतियों के प्रति लोगों का ध्यान आकर्षित करता है। व्यंग्य लक्षित व्यक्ति / संस्था पर इस प्रकार चोट करता है कि उसका निशान दिखाई न दे, पर अपने शिकार में तिलमिलाहट भर दे। यही तिलमिलाहट उसे उस विसंगति को दूर करने के लिए प्रवृत्त भी करती है।

इस व्यंग्य संग्रह में संकलित हर रचना पाठकों को अपने साथ बहा ले जाने, उन्हें गुदगुदाने, सोचने और खुद को बदलने के लिए प्रवृत्त करती है। जीवन जीने का ढंग बन चुकी विसंगतियों / विद्रूपताओं को दूर करने का उद्देश्य लेकर रची गई ये रचनाएं पढ़ना सुखद अनुभव से गुजरना है।


About the Author:

एम. ए. अर्थशास्त्र, एम.कॉम, एल एल.बी, सीए आइ आइ बी, पी एच. डी (कॉमर्स) डॉ. रमाकांत शर्मा पिछले लगभग 45 वर्ष से लेखन कार्य से जुड़े हैं। उनके अब तक छह कहानी संग्रह, नया लिहाफ, अचानक कुछ नहीं होता, भीतर दबा सच, चयनित कहानियां, तुम सही हो लक्ष्मी, सूरत का कॉफी हाउस (अनूदित कहानियां) तथा तीन उपन्यास मिशन सिफर, छूटा हुआ कुछ और एक बूंद बरसात प्रकाशित हो चुके हैं। उनका व्यंग्य संग्रह कबूतर और कौए प्रकाशित और चर्चित हो चुका है।  

महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी से सम्मानित डॉ. रमाकांत शर्मा को यू.के. कथा कासा कहानी प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार के अलावा अखिल भारतीय स्तर पर अन्य कई पुरस्कार मिल चुके हैं। उनकी कई कहानियों का मराठी, सिंधी, गुजराती, तेलुगु और उड़िया में अनुवाद हो चुका है। हिसाब बराबर उनका दूसरा व्यंग्य संग्रह है। उनके व्यंग्यों में कथा तत्व का होना बड़ी खूबी

है। संवेदनशील और पैनी दृष्टि रखने वाले डॉ. रमाकांत शर्मा की लेखनी से कागज पर उतरी व्यंग्य रचनाएं पढ़ने का अपना ही आनंद है।





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