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दोस्तों, ज़िंदगी का सफर बड़ा ही विचित्र है। हमारी ज़िंदगी में एक तरफ जहाँ कई सुखद घटनाएँ होती हैं तो वहीं दूसरी तरफ कई दुखद घटनाएँ भी हो जाती हैं। मेरा तो मानना है कि ज़िंदगी नाना-प्रकार के सुख-दुख रूपी साजो-सामान से लदी वो नाव है जो संसार रूपी सागर में हिचकोले खाती हुई लगातार आगे बढ़ती चली जाती है। कभी ऐसा लगता है कि इस नाव को अपना किनारा मिल गया है तो कभी ऐसा भी लगता है कि यह नाव अपने किनारे की तलाश में कहीं दूर भटकती चली जा रही है। फुर्सत में न जाने क्यों, अक्सर मुझे याद आते हैं वो हमसफ़र जिन्होंने मेरे दिल में अपनी एक अलग जगह बना रखी है। इनमें से कुछ तो ऐसे भी हैं जो यदाकदा धीरे से दिल से निकल कर जब कभी भी बाहर झाँकते हैं तो मेरा दिल बेहद खुश हो जाता है जबकि कुछ ऐसे भी हैं जो दिल में आज भी हल्का सा दर्द दिए बिना मानते ही नहीं।
ये मेरे अपने, अपनों के बीच आपस की नोंक-झोंक, आईआईटी (बीएचयू) का टी-क्लब, आइएलएस व्हाट्सअप ग्रुप और वो व्यंग परिहास के मजेदार किस्से आज भी मुझे याद आते हैं, जिसने कभी हमें भरपूर गुदगुदाया और हँसाया था। इन सब के बीच मैं कैसे भूल सकता हूँ अपनी पत्नी के साथ हुई उन तमाम नोंक-झोंक को भी जो आज शादी के करीब चालीस साल बाद भी हमारी ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुकी है। इस यादों के सफर को कुछ वास्तविक और कुछ काल्पनिक घटनाओं से जोड़कर यह लघुकथा संकलन तैयार किया गया है। पाठकों की सुविधा के लिए पुस्तक को निम्लिखित तीन मुख्य भागों में बांटा गया है।
भाग १. मेरे अज़ीज़
भाग २.मेरा घर संसार
और भाग ३. मेरा सुकून: व्यंग परिहास एवं रोचक प्रसंग
हाँ तो दोस्तों, अब देरी किस बात की, उठाइए ये आपकी अपनी किताब और रंग जाइए मेरे साथ जीवन के रंगों में!
३० जून १९५३, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में जन्मे डॉ. अरुण कान्त झा की प्रारंभिक शिक्षा बनारस की गलियों में स्थित सारस्वत खत्री हायर सेकेन्डरी विद्यालय में हुई। हाईस्कूल की परीक्षा पास करने के पश्चात आपने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी से प्री-यूनिवर्सिटी, मेकेनिकल इंजीनियरिंग बी.टेक. (१९७४) और एम.टेक. (१९७६) की परीक्षा पास की और १९८८ में बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मेसरा, रांची से पीएचडी (मेकेनिकल इंजीनियरिंग) की उपाधि भी प्राप्त की।
३० जून २०१८ को आप प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष मेकेनिकल इंजीनियरिंग, आईआईटी (बीएचयू) के पद से रिटायर हो कर वर्तमान में इंस्टीट्यूट प्रोफेसर के पद पर मेकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग, आईआईटी (बीएचयू) में कार्यरत हैं।
तकनीकी विषयों के अतिरिक्त हिन्दी भाषा में लघुकथाएँ व कहानियाँ लिखना-पढ़ना आप का शौक है। कुछ वर्षों पूर्व, मासिक पत्रिका ‘धर्मयुग’ में आप की एक व्यंग-परिहास रचना प्रकाशित हो चुकी है। ‘ज़िंदगी के रंग, तेरे मेरे संग’ आपकी पहली लघुकथा संकलन रचना है।