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About the Book:
जब एक खामोश-सी नीली ‘वादी’ में एक शायर को किसी के क़दमों की आहट सुनाई पड़ती है, किसी के साँसों की खुशबू उसकी साँसों में घुलती है, हर पहाड़ी से, हर बादल से, हर पेड़ से जब उसे कोई इशारा करता है और बहुत तलाश करने पर भी उसे जब ‘तुम’ नहीं मिलता और वह किसी थके-हारे फुल की तरह हवा के झोंकों के तकिये पे सर रख कर सो जाता है, तब उसे अपने अंदर के पराग की अनुभूति होती है, जैसे मृग को कस्तूरी का इल्म होता है और वह ‘मैं’ में खो जाता है।
इसी पुरसुकून भरे लम्हे में शायर सवालों में जवाब ढूंढता है और जवाबों में सवाल, कभी तिलिस्म को हकीकत मान बैठता है तो कभी हक़ीक़त को नकार देता है, कभी खुदा से मुहब्बत कर बैठता है और कभी तो खुद को ही खुदा मान लेता है। इसी ‘तुम’, ‘मैं’ और खुबसुरत वादियों की सफर आप भी कर सकें इसीलिए ये नज़्मे आपके साथ साझा किया है।
About the Author:
डॉ. पार्थजीत दास का जन्म और उनकी प्रारंभिक शिक्षा ओडिशा राज्य में हुई, जिसके बाद उन्होंने भारत और दुनिया के कई राष्ट्रों और राज्य सरकारों के साथ एक सलाहकार के रूप में काम किया ।
उनकी 'विचारों की रचनात्मकता' और 'अभिव्यक्ति की मौलिकता' को राष्ट्रीय स्तर पर विधिवत पहचान मिली जब उन्हें वर्ष १९९७ में रचनात्मक लेखन के लिए प्रतिष्ठित राष्ट्रीय बालश्री पुरस्कार के लिए चुना गया, जब वे केवल १३ वर्ष के थे।
जीवन के अनुभव और एक चिरंतन खोज की भावना उन्हें हिंदी और अंग्रेजी में कविताएं, लघु-कहानियां, लेख, नाटक, यात्रा-वृत्तांत आदि लिखने को प्रेरित करते हैं जो कई ऑनलाइन और प्रिंट मीडिया में प्रकाशित भी हुए हैं। वह अपने लेखों का पहला ड्राफ्ट अपने ब्लॉग maybemay.blogspot.com पर साझा करते हैं।
अंग्रेजी कविताओंका उनका पहला संग्रह ‘Silent Horizons’ का वर्ष २०१० में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, नई दिल्ली में कई मान्य लेखकों और श्रोताओं के बीच लोकार्पण हुआ था। यह हिंदुस्तानी (हिंदी-उर्दू) में नज़्मों का उनका पहला संग्रह है। वह नई दिल्ली में रहते हैं ।