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रिश्तों के जख्म (Rishto ke Jakhm)

By आशा गान्धी


GENRE

Abstract

PAGES

68

ISBN

978-93-88698-79-5

PUBLISHER

StoryMirror

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About Book:

इन्सान पैदा होते ही जाने कितने ही रिश्तों में बंध जाता है और अपने साथ कितनों को नए रिश्तों में बाँध लेता है। मम्मी, पापा, भाई, बहन, दादा, दादी और भी न जाने कितने रिश्ते! थोड़ा बड़ा होता है तो घर से बाहर निकलते ही दोस्ती का रिश्ता बना लेता है। और शादी होने पर पति पत्नी का एक पवित्र रिश्ता; उसके बाद शायद फिर से एक बार नए रिश्तों की बरसात सी आ जाती है ।जीवन भर इन रिश्तों के दायरे में रह कर अपनी मर्यादाओं व ज़िम्मेदारियों को निभाते हुए इन रिश्तों में ही उम्र भर खो कर रह जाता है। कुछ रिश्ते नज़दीकी होने पर भी हाथ में रखे बुलबुलों की तरह फिसल कर दिलों से दूर हो जाते हैं और फिर उन्हें पकडकर रखने पर, जीवन भर ज़ख्म बनसाथ चलतेतो हैं ,लेकिनजब इन रिश्तों के ज़ख़्म नासूर बन कर रिसने लगते हैं तब सिवाय दर्द के कुछ नहीं मिलता।इन बुनियादी रिश्तों से अलग होकर कभी-कभी इंसान कुछ ऐसे रिश्ते भी बना लेता है, जिनका कोई

नाम नहीं होता। दिलों से जुड़े रिश्ते इन बुनियादी रिश्तों से कई गुना बड़े हो जाते हैं क्योंकि उन्हें बदले में ना कुछ लेने की ख़्वाहिश होती है और ना ही ढोंग या छल। वे सिर्फ़ हमदर्द बनकर दिलों में मरहम बन जाते है । ऐसे रिश्ते; इस समाज के बनाए तमाम रिश्तों से कहींऊपर होते है। रिश्तों की इन सिसकती तड़प और पीड़ा को सहते-सहते मानसी एक मूरत बन कर रह गई थी, उम्र भर उन रिश्तों के बोझ में दबी हुई आख़िरी साँस का इंतज़ार करके बैठी थी और फिर……


About Author:

आशा गाँधी सरल हिन्दी भाषा की लेखिका हैं, रिश्तों के ज़ख़्म इनकी लिखी दूसरी किताब है। पहली पुस्तक उदास शाम ( संक्षिप्त कहानियों व कविताओं का संग्रह ) 1992 में प्रकाशित हुई थी। इस लम्बी अवधि के बाद उनकी वापसी हुई है; इस बीच अख़बारों

में व पत्रिकाओं में भी लिखती आई हैं। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर के बजाज परिवार में हुआ था। हिंदी साहित्य के प्रति आस्था उन्हें जन्मभूमि उत्तर प्रदेश से विरासत में मिली है। उनका मानना है कि इंसान अपने आदर्श बचपन में ही बना लेता है, कालेज के दिनों से ही वह शिवानी जी, अमृता प्रीतम व भीष्म सहानी की लेखनी से प्रभावित थी। विवाह पश्चात धनबाद उनकी कर्मभूमि रही। बी॰एड॰ करने के बाद कुछ साल शिक्षिका के पद पर भी कार्यरत रहीं। वर्तमान समय में वह कलकत्ता में रहती है व समाज सेवा से जुड़ी हुई हैं।




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