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काव्य-व्यंजन –पुस्तक परिचय (आप यह पुस्तक क्यों पढ़ें?)
एक कवि-हृदया भारतीय गृहिणी के हाथ में जब कड़छी की जगह कलम आ जाती है तो कैसे-कैसे पकवान कल्पना की रसोई में पकने लगते हैं, लीजिए उन्हीं व्यंजनों का जायज़ा आप भी हिन्दी और अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में.
इन कविताओं का अंग्रेज़ी में अनुवाद गुजरात की सुविख्यात लेखिका स्मिता ध्रुव ने किया है.
आशा है ये व्यंजन आपके मन को वैसे ही तृप्त करेंगे, जैसे आपकी रसोई में पके व्यंजन आपकी भूख को........
इस पुस्तक की विशेषता और मौलिकता यह है कि आप भोजन के प्रतीकों के माध्यम से विभिन्न प्रकार के विचार और चिंतन के बिंदु पाएँगे. साहित्य में यह एक नया प्रयोग हो सकता है. जहाँ विभिन्न विषयों पर अपने भावावेगों को व्यक्त करने के लिए रोटी, प्याज, अचार,चटनी, हरी मिर्च, राई, आलू, दहीबड़ा, पापड़, पान, जलेबी आदि के प्रतीकों से साहित्य की रचना की गई है, वहीँ नारी विमर्श, आपसी स्नेह, समसामयिक और आध्यात्मिक पहलूओं को भी इनमें लपेट कर परोसा गया है.
प्रसिद्ध शायरा देवी नागरानी जी वर्जिनिया US से लिखती हैं, ‘जो रोचकता इसमें पाई वह अनोखी भी है और ज़ायक़ेदार भी.’ डॉ.रंजना अरगड़े, निदेशक भाषा भवन गुजरात विश्वविद्यालय,अहमदाबाद ने अपने प्रतिभाव में लिखा,‘ कविताओं में छिपा मर्म और व्यंग्य-शायद व्यंजनों से अधिक लज़ी़ज है।’ प्रेमचंद पुरस्कार’ से सम्मानित डॉ. प्रणव भारती लिखती हैं. ‘ जब कभी बेस्वाद मन होगा तब ये रचनाएं मन की बेमौसमी स्वाद रहित हवाओं को शीतल स्वादिष्ट व्यंजनों में परिवर्तित करके मन को शांति व शीतलता प्रदान करेंगी-----आमीन!’
इसी प्रकार प्रसिद्ध कथाकारा और कवयित्री मधु सोसी जी का कहना है,’ काव्य व्यंजन का ये थाल वाह!! वाह!! के अलावा अन्य प्रशंसा का मोहताज़ नही है | सच ही यह लाज़वाब है, एक अनुपम मौलिक सोच है |’ स्वतंत्र पत्रकार और सुप्रसिद्ध लेखिका नीलम कुलश्रेष्ठ जी लिखती हैं, ‘ मंजु जी ने भी नहीं सोचा होगा कि वे रसोई के काव्य व्यंजनों पर कवितायें लिखने वाली सबसे पहली कवयित्री बन जाएंगी . दही बड़ों या कबाब के माध्यम से सन्देश देने लगेंगी कि जीवन में बड़ा ऊंचा स्थान पाने के लिए क्या क्या कष्ट झेलने पड़ते हैं।’