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बचपन, युवावस्था, प्रौढावस्था और वृद्धावस्था की अपनी अलग -अलग अनुभूतियाँ हुआ करती हैं। यदि जीवन असामान्य और अप्रत्याशित होकर गुज़रे तो ऐसा एक कवि ह्रदय के लिए और भी भावुक हुआ करता है। इन घटनाओं से इनसे गुजरना सभी का होता है लेकिन उनकी अनुभूतियों की अभिव्यक्ति सभी नहीं कर पाते हैं।
'काव्य किसलय' में आप ऐसे ही काव्यात्मक चित्र देख सकेंगे, कवि के सुख–दुःख की गहनता को महसूस कर सकेंगे। यौवन के प्रेम और जुदाई, युवा सैन्यपुत्र की शहादत, अप्रत्याशित विकलांगता के बावजूद कवि का संघर्ष, छीजते सामाजिक और पारिवारिक मूल्य, कोरोना का महासंकट इनकी काव्य रचनाओं की विषयवस्तु हैं। इनमें निराशाजनक परिस्थितियों के साथ- साथ एक आदर्श व्यक्ति, परिवार और समाज की परिकल्पना भी प्रतिबिंबित है। पाठकों को इनकी हर कविताओं में जादुई आकर्षण मिलेगा।
पहली सितम्बर वर्ष 1953 को गोरखपुर उ.प्र. के ग्राम विश्वनाथपुर (पोस्ट-सरया तिवारी) तहसील खजनी में प्रतिष्ठित सरयूपारीण ब्राम्हण परिवार में जन्में श्री प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी ने दी.द. उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय से अपनी उच्च शिक्षा पूरी करके वर्ष 1977 से आकाशवाणी में अपनी सेवा शुरू की। इस सेवा में आने के पहले से ही विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए ये लिखते रहे हैं और पत्रकारिता का भी इन्हें पर्याप्त अनुभव रहा है। अपने विश्वविद्यालय के लिए पहली बार “छात्रसंघ पत्रिका“ संपादित करने का इन्हें श्रेय तो है ही, पाक्षिक “सही समाचार”, दैनिक “हिन्दी दैनिक” आदि से भी वे सह सम्पादक के रूप में जुड़े रहे। वर्ष 2002 में अखिल भारतीय स्तर की एक लेखन प्रतियोगिता में आई 25 हज़ार प्रविष्टियों में इन्हें टाटा प्रतिष्ठान ने प्रथम पुरस्कार के रूप में सम्मानित करते हुए “टाटा इंडिका” गाड़ी प्रदान की तो अभी पिछले दिनों जनवरी 2021 में यशस्वी फाउन्डेशन, मुंबई ने इनको क्रिएटिव राइटिंग के लिए लाइफ टाइम एचीवमेंट एवार्ड से नवाज़ा है। आकाशवाणी की लगभग चार दशक की सेवा में इलाहाबाद, गोरखपुर, रामपुर और लखनऊ केन्द्रों पर रहकर इन्होने रेडियो कार्यक्रम निर्माण में अपनी प्रतिभा दिखाते हुए अनेक कार्यक्रम तैयार किये जिन्हें राष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिली। वर्ष 2013 में रिटायरमेंट के बाद पुनः पत्र-पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन और ब्लॉग लेखन में सक्रिय हैं।
'भारत में ग्रामीण एवं कृषि प्रसारण', 'अद्भुत और अद्वितीय', 'कब आयेगी नई सुबह' (लघुकथा संग्रह), उ. प्र. हिन्दी संस्थान से अनुदानित 'सांप, सीढ़ी, ज़िंदगी' (संस्मरण) आदि पुस्तकें अब तक छप चुकी हैं ।