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About Book:
प्रसारण की दुनियां में लगभग चार दशक तक सेवा करने के पश्चात स्वतंत्र लेखन की टूटी-छूटी कड़ियों को जोड़ने के लिए लौट आये हैं प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी । वे शिद्दत से यह महसूस करते रहे हैं कि 'आन एयर' से ज्यादा सशक्त और देर तक टिकाऊ माध्यम है – पुस्तकों में उपस्थित शब्दों की दुनियां । हम सभी जो महसूस कर रहे हैं, जिस दुनिया में जी रहे हैं हर पल हमारे सामने कोई ना कोई किस्सा कहानी का पात्र और समानुपातिक परिस्थतियाँ आ खडी होती हैं । हम उसको जब शब्द दे देते हैं तो वह एक रचना बन जाती है । इस पुस्तक में आप ऎसी ही कुछ लघुकथाओं में देख सकेंगे जीवन के विविध रंग, जीवन के विविध पात्र । इनमें हो सकता है आप भी कहीं कहीं नज़र आएं, आपकी पीड़ा या आपका सुख भी छलकते जाम की तरह स्वाद दे ! तो आइये इस संग्रह के एक - एक पन्ने पर तलाशें जीवन के विविध रंग- रूप ।
About Author:
पहली सितम्बर वर्ष 1953 को गोरखपुर उ.प्र. के ग्राम विश्वनाथपुर (सरया तिवारी) तहसील खजनी में प्रतिष्ठित सरयूपारीण ब्राम्हण परिवार में जन्में श्री प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी ने दी.द.उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय से अपनी उच्च शिक्षा पूरी करके वर्ष 1977 से आकाशवाणी में अपनी सेवा शुरू की । इस सेवा में आने के पहले से ही विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए ये लिखते रहे हैं और पत्रकारिता का भी इन्हें पर्याप्त अनुभव रहा है । अपने विश्वविद्यालय के लिए पहली बार “छात्रसंघ पत्रिका” संपादित करने का इन्हें श्रेय तो है ही, पाक्षिक “सही समाचार”, दैनिक “हिन्दी दैनिक” आदि से भी सह सम्पादक के रूप में जुड़े रहे । वर्ष 2002 में अखिल भारतीय स्तर की एक लेखन प्रतियोगिता में आई 25 हज़ार प्रविष्टियों में इन्हें टाटा प्रतिष्ठान ने प्रथम पुरस्कार के रूप में सम्मानित करते हुए “टाटा इंडिका” गाड़ी प्रदान की थी । आकाशवाणी की लगभग चार दशक की सेवा में इलाहाबाद, गोरखपुर, रामपुर और लखनऊ केन्द्रों पर रहकर इन्होने रेडियो कार्यक्रम निर्माण में अपनी प्रतिभा दिखाते हुए अनेक कार्यक्रम तैयार किये जिन्हें राष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिली । वर्ष 2013 में रिटायरमेंट के बाद पुनः पत्र-पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन और ब्लॉग लेखन में सक्रिय हैं ।