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छूटा हुआ कुछ (Chuta Hua Kuchh)

By डॉ. रमाकांत शर्मा (Dr. Ramakant Sharma)


GENRE

Abstract

PAGES

164

ISBN

978-93-90267-47-7

PUBLISHER

StoryMirror

HARDCOVER ₹350
Rs. 350
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About The Book

हमारा जीवन तमाम तरह की व्यस्तताओं में इतनी तेजी से बीत जाता है कि जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं तो हैरत होने लगती है। जहां एक-एक दिन बहुत बड़ा लगता है, वहीं कब वे दिन महीनों और वर्षों में ढ़लते हुए जिंदगी की शाम पर लाकर खड़ा कर देते हैं, पता ही नहीं चलता। यह वह समय होता है जब लोग अपनी ज़िंदगी के बीते हुए क्षणों को सिलसिलेवार लगाने की कोशिश करते हैं। इस प्रक्रिया में उनके मन में उन चीजों का मलाल सिर उठाने लगता है जो उन्हें मिल सकती थीं, पर मिल नहीं पाईं। इसके लिए कभी वे खुद को तो कभी दूसरों को कोसने लगते हैं।

जिंदगी में जो कुछ उन्हें नहीं मिल पाया, जो कुछ उनसे छूट गया, वह उन्हें निरंतर सालता रहता है। जो लोग बचपन को बचपन की तरह और जवानी को जवानी की तरह नहीं जी पाए उनके दिल में टीस उठना स्वाभाविक है। लेकिन, उम्र को पीछे तो नहीं लौटाया जा सकता।


“छूटा हुआ कुछ” उपन्यास ऐसी ही एक सेवानिवृत्त महिला उमा जी की कहानी है जो कभी प्रेम के अहसास से नहीं गुजर पाईं। अब जब वे सेवानिवृत्त हो चुकी हैं तो सोचती हैं कि ऐसा क्या और क्यों हुआ जो वे जीवन में कभी किसी की प्रेम-पात्र नहीं बन सकीं और ना ही वे खुद किसी के प्यार में डूब सकीं। समय काटने के लिए जब वे पत्रिकाओं में प्रेम कहानियां पढ़तीं हैं तो बेचैन हो जातीं हैं। उन्हें लगता है काश वे भी प्रेम के उस अहसास से गुजरी होतीं जो ज़िंदगी का मधुरतम अहसास कहा जाता है। लेकिन, उम्र के इस मोड़ पर अब क्या हो सकता था, उनका जीवन प्रेम के उस अहसास के बिना ही गुजर जाने वाला था। यह बात उन्हें रह-रह कर कचोटती रहती।

तभी एक दिन उनसे पहले रिटायर हो चुके उनके सहकर्मी का फोन आता है जो उनकी उस अधूरी इच्छा की पूर्ति का साधन बन जाता है। पकी उम्र में प्रेम के रास्ते पर चलते हुए उमा जी के अहसासों, उनके अनुभवों, उनके पति और खुद उनकी मनोस्थिति को इस उपन्यास में बारीकी से समझने और उकेरने की कोशिश की गई है। इस क्रम में प्रेम के विविध रूपों से पाठकों का साक्षात्कार होता चलता है।


About The Author

एम.ए.(अर्थशास्त्र), एम.कॉम (वित्तीय प्रबंधन), एलएल.बी, सीएआइआइबी तथा वित्तीय प्रबंधन में पीएच.डी डा. रमाकांत शर्मा पिछले 45 वर्ष से लेखन कार्य से जुड़े हैं। लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उनकी कहानियां, व्यंग्य तथा अनुवाद प्रकाशित होते रहे हैं। अब तक उनके पांच कहानी संग्रह – ‘नया लिहाफ’, ‘अचानक कुछ नहीं होता’, ‘भीतर दबा सच’, “डा. रमाकांत शर्मा की चयनित कहानियां”, “तुम सही हो लक्ष्मी” तथा अनूदित कहानी संग्रह ‘सूरत का कॉफी हाउस’ और व्यंग्य संग्रह ‘कबूतर और कौए” प्रकाशित हो चुके हैं। उनके तीन उपन्यास – “मिशन सिफर”, “छूटा हुआ कुछ” तथा “एक बूंद बरसात” भी प्रकाशित हैं।

मुंबई रेडियो से उनकी कहानियां नियमित रूप से प्रसारित होती रही हैं। महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी से सम्मानित डा. शर्मा की कई कहानियां अखिल भारतीय स्तर पर पुरस्कृत हुई हैं। यू.के. कथा कासा कहानी प्रतियोगिता में उन्हें प्रथम पुरस्कार मिला है। उन्हें कमलेश्वर स्मृति कहानी पुरस्कार दो बार प्राप्त हो चुका है। उनकी कई कहानियों का मराठी, सिंधी, गुजराती, तेलुगु और उड़िया में अनुवाद हो चुका है।

बैंकिंग और उससे संबद्ध विषयों पर भी उनकी सात पुस्तकें, वित्तीय समावेशन, व्यावसायिक संप्रेषण, बैंकिंग विविध आयाम, प्रबंधन विविध आयाम, इस्लामी बैंकिंग, कार्ड बैंकिंग और समावेशी विकास और नया भारत प्रकाशित हो चुकी हैं। “कार्ड बैंकिंग” को महामहिम राष्ट्रपति जी के हाथों पुरस्कृत किया गया है।

“व्यावसायिक-संप्रेषण” सीएआइआइबी जैसे प्रोफेशनल इंस्टिट्यूट में पाठ्य-सामग्री के रूप में शामिल की गई है।

संप्रति वे भारतीय रिज़र्व बैंक से जनरल मैनेजर के रूप में सेवानिवृत्ति के बाद पढ़ने-पढ़ाने और स्वतंत्र लेखन कार्य में जुटे हैं।








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