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इस संग्रह की कहानियों में मनुष्य के अतल मन की गहराइयों की थाह ली गई है। मनुष्य अपने व्यवहार से अपने मन को प्रकट करता है। डा. रमाकांत शर्मा मानव मन की अतल गहराइयों में पहुंच कर पात्रों के सुख-दु:ख से संवाद करते हैं। वही कहानी मन में जगह बना पाती है जिसमें यथार्थ का पुट हो, रोचकताभरा बयान हो और मनुष्य की भीतरी परतों की दास्तान हो। इस दृष्टि से इस संग्रह की कहानियां खरी उतरती हैं। कहानियों का कोई भी पात्र काल्पनिक नहीं लगता, वह जीता-जागता हाड़-मांस का मनुष्य है। कहानी की कहन सहज, स्वाभाविक और सरल शैली में होने से पाठकों के लिए रोचकता से भरी है। कहानियां पढ़ कर ऐसा लगता है कि हमेशा सदाशयता की जीत होती है। पात्र एक सात्विकता के साथ जीवन को देखते हैं और विपरीत स्थितियों में भी अपने को डिगने नहीं देते, यह कथाकार की सृजनात्मक जीत है।
इस संग्रह की कहानियों की भाषा बहुत सहज है, शैली कहानियों के मर्म तक पहुंचाने में सफल रही है। हर कहानी कोई न कोई संदेश देती है। यह संदेश, मौटेतौर पर लाउड न होकर मनोविश्लेषणात्मक ढंग से, मनुष्य के मन को अनेक आयामों, कोणों से निरूपित कर प्रस्तुत किया गया है। इन कहानियों की रोचकता और पठनीयता विशिष्ट गुण के रूप में उजागर होते हैं। इन कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये पाठक की संवेदनशीलता को जगाती हैं और उससे साधारणीकरण की हद तक संवाद स्थापित कर लेती हैं।
डॉ. रमाकांत शर्मा उन कथाकारों में से हैं जो मनुष्य की भीतरी परतों का विश्लेषण कर सामाजिक, आर्थिक और वैयक्तिक ऊहापोहों को अक्षरबद्ध करते हैं।
तुम सही हो लक्ष्मी संग्रह एक विशिष्टता लिये हुए है कि कहानियों में विविधता बहुत है। एक ओर जहां मनोविश्लेषण है, वहीं सामाजिकता भी है, परिवार बांधे रखने के लिए उदाहरण भी हैं, वे भी दिखावटी नहीं, बल्कि सहज, स्वाभाविक रूप में सब घटित होते चलता है क्योंकि अभी भी समाज में सकारात्मक शक्तियां हैं।
ऐसे ही सकारात्मक पात्रों के इर्द-गिर्द कथावस्तु का ताना-बाना बुना गया है।