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कारवान - ए - इश्क़ (Karwaan - E - Ishq)

Author | नेहा गोडघाटे (Neha Godghate) Publisher | StoryMirror Infotech Pvt. Ltd. ISBN | 9789360700782 Pages | 148 Genre | Poetry

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₹350

About the Author -


कोई कहे कि मुझे दस-बारा लाइनों में बयाँ करो.. कोई कहे कि मेरी कविता को दस-बारा

लाइनों में पकड़ के दिखाओ। कोई कहे कि मैं जैसी हूँ वैसी कि वैसी उतारो तुम्हारे तस्वीर में…

नेहा को, या उसकी नज़्म को दस-बारा लाइनों में बयाँ नहीं किया जा सकता। क्योंकी कोई भी

कविता कभी पूरी नहीं होती। कवी सिर्फ़ एक कविता से दूसरे में प्रवेश करता है। उसकी पूरी

किताब एक जर्नी होती है। नेहा की "कारवान-ए-इश्क़", “परवाज़”, “इंडिया इज माय कंट्री” ये  तीनों किताबें नेहा की

अलग थलग शायराना सेंसिटिविटी बयाँ करतीं हैं। मुंबई जैसे भिड़ भड़क्के वाले शहर में रहकर

इस तरह की सेंसिटिविटी को बरक़रार रखना नामुमकिन है। ये सिर्फ़ वही शख़्स कर सकता है

जो पैदाइशी शायराना दिल लेके पैदा हुआ हो। भले ही वो रोज़ अपनी गाड़ी चलाती हुई ख़ुद

ऑफिस जा रही होती हैं वो हर वक़्त मुहब्बत में होतीं हैं। ये मुहब्बत सफ़र की होती है, समंदर

की होती है, इस शहर की होती है, अकेलेपन की होती है, किताबों की होती है, काम की होती

है और नाकाम की भी होती है। नेहा एक ही समय में जहाँ होती हैं वहाँ तो नहीं होती। कवी

होने की ये पहली और आख़री शर्त नेहा पूरी करती हैं। उसको चार दीवारों में क़ैद नहीं किया

जा सकता.. वो हमेशा एक उड़ान भरने के लिए तैयार पंछी की तरह पंखों में भरी भरी-सी

होती हैं। इसी लिए जिसे सिर्फ़ चार दीवारें पसंद हों ऐसी कोई दुनियाँ नेहा की परवाज़ को

रोक नहीं सकती।






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